देश में कोरोना वायरस के कम्यूनिटी ट्रांशमिशन को लेकर काफी चर्चा हो रही है। जहां सरकार ने साफ कर दिया है कि भारत में अभी कम्युनिटी ट्रांशमिशन नहीं हुआ है, हालांकि ऐसा देखा गया है कि जो लोग कोविड से ठीक को चुके हैं, वो यह सोचकर कि उनके अंदर कोरोना से लड़ने वाले एंटीबॉडी मौजूद हैं, लापरवाही बरत रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ की मानें तो कोविड के दोबोरा लक्षण की बात को नकार नहीं सकते हैं। क्योंकि जिन लोगों को संक्रमण एक बार हो चुका है, उसे फिर से संक्रमण का खतरा उतना ही रहता है, जितना बाकियों को।
दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉ. नंद कुमार का कहना है कि चीन समेत कई देशों में दोबारा संक्रमण होने की बात सामने आई है। इसी तरह भारत के केरल में केस कम हो गए थे, लेकिन रिपोर्ट आई कि कोरोना वायरस दोबारा हो रहा है। वहां ये नहीं है कि नए लोगों को हुआ है, बल्कि ठीक हुए लोगों में ही कुछ हल्के लक्षण नजर आए। इसलिए माना जा रहा है कि जिनको कोरोना हो चुका है, वे फिर से संक्रमित हो सकते हैं। लेकिन अभी इसे लेकर कोई डाटा नहीं आया है कि यह कैसे हो रहा है और दोबारा बीमारी की इंटेंसिटी कितनी है। अभी ऐसा मान के चल रहे हैं अगर दोबारा संक्रमण हुआ तो ज्यादा परेशानी नहीं आएगी क्योंकि उनके अंदर वायरस से लड़ने की क्षमता है।
डॉ. नंद के अनुसार अगर कोई विदेश से आया और उसके संपर्क में आने वाले किन्ही 5 लोगों को कोविड हुआ, तो ऐसे में पता चल जाता है कि किससे संक्रमण हुआ है। जब संक्रमण बढ़ता जाता है तब एक ऐसी स्थिति आती है जब किसके संपर्क में आने से संक्रमण हुआ है, यह पता नहीं चल पाता। इसके अलावा जब किसी की कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं है और वह बाहर नहीं जा रहा है, तब संक्रमित हो जाए, तो मानते हैं कि कम्यूनिटी ट्रांशनिशन हो गया। इसके कई टेक्निकल टर्म भी हैं, जिसके आधार मानते हैं। इसके फायदे भी हैं और नुकसान भी। कई जगह जैसे दिल्ली में सीरो सर्वे में पता चला कि 24 प्रतिशत लोग संक्रमित हुए ठीक हो गए और उनके अंदर एंटीबॉडी भी हैं। जो बताता है कि उन्हें कम्यूनिटी से संक्रमण हुआ है। इसका फायदा है कि दिल्ली में हर्ड इमन्यूनिटी बढ़ रही है।
फिजिकल इम्यूनिटी के साथ इमोशनल इम्यूनिटी जरूरी
कोरोना वायरस एक नया वायरस है जिसके बारे में कई नई बातें सामने आ रही हैं। लेकिन भारत में रिकवरी रेट बढ़ता जा रहा है, जिससे देश में डेथ रेट भी कम है। ऐसे में डॉ नंद कहते हैं कि इसलिए जरूरी है कि जिस तरह से फिजिकल इम्यूनिटी के साथ इमोशनल इम्यूनिटी बनाए रखें। कास करके कोविड के मरीज या ठीक हुए लोगों से साथ। उन्होंने कहा कि सबसे पहले यह समझना है कि किसी भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य में थोड़ा बदलाव हो सकता है। इसका ये मतलब नहीं कि वह मानसिक तौर पर बीमार है। बल्कि उनके मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है, जिससे सोचने और एहसास करने पर प्रभाव पड़ता है। एक डर बैठ जाता है कि कहीं कोविड न हो जाए। इसकी कोई दवा नहीं है। ऐसे में इमोशनल इम्यूनिटी की जरूरत होती है। एक दूसरे से, परिवार से, दूर दराज़ जो लोग रह रहे हैं, उनसे बात करें। प्राणायाम, योग, आदि करें। इससे मन शांत होता है। घर पर इतने काम रहते हैं, उन्हें खुशी के साथ करें। खुश रहेंगे तभी कोविड से जंग में साथ खड़े रहेंगे।
कोविड मरीज के मानसिक स्वास्थ्य में कितना आया बदलाव
वहीं मानसिक स्वास्थ्य पर उन्होंने जानकारी दी कि पहले जब कोरोना आया था तब लोग घर से निकलना नहीं चाहते थे, अस्पताल नहीं आना चाहते थे। अपनी कोविड जांच कराने में भी डरते थे। लेकिन अब लोग अस्पताल आ रहे हैं, उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है। जहां तक कोविड से ठीक हुए मरीजों की बात है, तो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है। कई लो सोचते हैं मुझे कोरोना नहीं होगा ,लेकिन होने के बाद आत्मविश्वास कम हो जाता है। थकावट, चिड़चिड़ापन, नींद न आना, एक डर की दोबारा कोविड न हो जाए, बैठ जाता है। लोगों से मिलना जुलना कम कर देते हैं, उनमें भी एक स्टिग्मा हो जाता है। हालांकि कुछ लोग काफी बोल्ड होते हैं जो प्लाज्मा डोनेट कर रहे हैं।
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