Follow Us 👇

Sticky

तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

सर्वदलीय मान्यता के एकदलीय नेता थे अटल जी।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी पुण्यतिथि 
👇
➡️ जन्म - 25 दिसम्बर  1924

➡️ जन्मस्थान- ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

➡️ निधन – 16 अगस्त  2018, दिल्ली 

➡️ पिता का नाम- कृष्ण बिहारी वाजपेयी 

➡️ माँ का नाम-  कृष्णा वाजपेयी 

➡️ पार्टी– भारतीय जनता पार्टी 

➡️ भारत के दसवें प्रधानमंत्री

➡️ वर्ष 1952 में अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, पर सफलता नहीं मिली।

➡️ पत्र-पत्रिका - राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य, वीर अर्जुन 
➡️ 2015 में भारत रत्न से सम्मानित।

➡️ अटल जी के जन्मदिवस 25 दिसम्बर को प्रतिवर्ष सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है।

देश के जन-जन के मन में अपनी ओज और तेजपूर्ण वाणी से एक अप्रतिम स्थान बनाने वाले भारत रत्न और 3 बार भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि 16 अगस्‍त को है। सारा देश उन्हें नमन कर रहा है। नीति सिद्धांत, विचार एवं व्यवहार की सर्वोच्च चोटी पर रहते हुए सदैव जमीन से जुड़े रहने वाले अटल जी से जिनका भी संबंध आया, वह राजनीति में कभी छोटे मन से काम नहीं करेगा।

अटल जी की पुण्‍य तिथि पर उनको याद करते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद प्रभात झा लिखते हैं कि विपक्ष में रहते हुए देश के हर दल के राजनेताओं और कार्यकर्ताओं के मन में विशिष्ट स्थान बना लेना, साथ ही उन दलों के कार्यकर्ताओं में यह भाव पैदा कर देना कि काश अटलजी हमारे दल के नेता होते! -यह सामर्थ्य अटलजी में ही था। विरोध में रहते हुए भी वे सदैव सत्ता पक्ष के नेताओं से भी देश में अधिक लोकप्रिय रहे। अपने अखंड प्रवास, वक्तव्य कला और राजनैतिक संघर्ष के साथ-साथ सड़कों से लेकर संसद में सिंह गर्जना कर तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके समकक्ष नेताओं के मन में भी अपना विशिष्ट स्थान बनाने वाले अटलजी सर्वदलीय मान्यता के एकदलीय नेता थे।

महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में की थी पढ़ाई 

प्रभात झा लिखते हैं, "हम सभी का सौभाग्य है कि अन्य लोगों से अधिक राजनैतिक, सामाजिक और पत्रकार के नाते और इससे भी अधिक ग्वालियर के नाते हमारा उनपर सर्वाधिकार था। ग्वालियर अटलजी की जन्मस्थली और प्रारंभ में कर्मस्थली रही। वे महाराज बाड़े स्थित गोरखी स्कूल और तत्कालीन विक्टोरिया कॉलेज, (आज का महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय) अटल जी की यादों से जुड़ा हुआ है। महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय में पढ़ चुके और पढ़ रहे छात्र गर्व से कहते हैं कि हम उस कॉलेज से ‘पासआऊट’ हैं, जहां अटल जी पढ़ा करते थे।"

एक समय पर अटल जी स्वदेश के में संपादक भी रहे। उनका स्वदेश से वैचारिक लगाव रहा। हम सभी स्वदेश में रहे, अतः हमलोगों से उन्हें और भी स्नेह था। ग्वालियर की गलियों को अटल जी ने साईकिल से नापा हुआ था। ग्वालियर की हर गली-हर चौराहे और हर मोहल्ले के नाम उनकी जुबां पर होते थे। हमलोगों से लगाव होने का कारण एक और था कि अटलजी के भांजे अनूप मिश्रा और उनके भतीजे दीपक वाजपेयी भी साथ-साथ एक ही कॉलेज में पढ़ते थे।

अटल जी एक तो बहुत सहज सरल थे। साथ ही सुरक्षा के नाम पर आज जिस तरह का वातावरण है, वैसा उस समय नेताओं के साथ नहीं था। अटल जी ‘शताब्दी’ में दिल्ली से बैठकर ग्वालियर आते थे। सुरक्षा के नाम पर श्री शिवकुमार पारेख उनके साथ ही रहा करते थे। शिवकुमारजी अटल जी के अनुज भांति ही थे।

ग्‍वालियर से जुड़ी अटल जी की यादें 

पूर्व सांसद प्रभात झा कहते हैं कि अटल जी की पुण्यतिथि पर हम भारत के जन-जन को यह बताना आवश्यक समझते हैं कि उनका जन्म ग्वालियर के जिस शिन्दे की छावनी स्थित कमल सिंह के बाग की पाटौर मे हुआ था। वह पाटौर उनके प्रधानमंत्री बनने तक यथावत रही। भारत की राजनीति में ईमानदारी का ऐसा अनुपम उदाहरण कभी देखने को नहीं मिला। वे प्रतिपक्ष के नेता रहते हुए ग्वालियर के ट्रेड फेयर (मेला) में हरिद्वार वालों के गाजर का हलुआ और मंगोड़ी खाने मोटर साईकिल पर बैठकर चले जाते थे।

ग्वालियर में अपने आप ही उनका मन वहां बीते बचपन की ओर लौट आता था। अटल जी मूल में इतने बड़े नेता होते हुए भी पार्टी के भीतर एक कार्यकर्ता के रूप में ही थे। सन 1996 की बात है। मध्य प्रदेश में भाजपा सांसदों, विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों का प्रशिक्षण वर्ग लगा था। बतौर प्रतिपक्ष के नेता के रूप में वे भोपाल स्थित भाजपा के प्रांतीय कार्यालय दीनदयाल परिसर के हॉल मे आए। प्रशिक्षण वर्ग में उनका उद्बोधन हुआ। उस उद्बोधन का दो पैरा मैं यहां उद्धत कर रहा हूं।

कार्यकर्ता होने का हमारा अधिकार छीना नहीं जा सकता 

अटल जी ने उद्बोधन के प्रारम्भ में कहा था कि “कार्यकर्ता मित्रों”, मेरे इस संबोधन पर आश्चर्य न करें। मैं जानता हूं कि इस प्रशिक्षण वर्ग में पार्टी के प्रमुख नेता उपस्थित हैं। सांसदगण भी विराजमान हैं। सभी विधायक भाई तथा बहनें भी वर्ग में भाग ले रही हैं। मैंने जानबूझकर कार्यकर्ता के नाते सबको संबोधित किया। हम यह दावा करते हैं कि हमारी पार्टी कार्यकर्ताओं की पार्टी है। जो नेता है वह भी कार्यकर्ता है। विशेष जिम्मेदारी दिए जाने के कारण वह नेता के रूप में जाने जाते हैं लेकिन उनका आधार है, उनका कार्यकर्ता होना।

जो आज विधायक हैं, वह कल शायद विधायक नहीं रहें। सांसद भी सदैव नहीं रहेंगे। कुछ लोगों को पार्टी बदल देती है, कुछ को लोग बदल देते हैं, लेकिन कार्यकर्ता का पद ऐसा है, जो बदला नहीं जा सकता। कार्यकर्ता होने का हमारा अधिकार छीना नहीं जा सकता। कारण यह है कि हमारा यह अधिकार अर्जित किया हुआ अधिकार है, निष्ठा और परिश्रम से हम उसे प्राप्त कर सकते हैं, वह ऊपर से दिया गया सम्मान नहीं है कि उसे वापस लिया जा सके। उन्होंने वर्ग में आगे कहा पार्टी के संगठन को सुचारू रूप से चलाने के लिये कार्य का विभाजन होता है, तदानुरूप पदों का सृजन होता है। अलग-अलग दायित्व होते हैं। पदों के अनुसार कार्यकर्ता पहचाने जाते हैं, लेकिन यह पहचान सीमित समय तक ही रहती है। संगठन का कोई पदाधिकारी 4 साल से अधिक अपने पद पर नहीं रहता। ऐसा किसी विशेष नियम के अन्तर्गत नहीं होता, यह एक परम्परा है, हम जिसका दृढ़ता से पालन करते हैं। देश में अनेक राजनीतिक दल हैं। उनमें न नियमित रूप से सदस्यता होती है और न चुनाव। जो एक बार पदाधिकारी बन गया, वह हटने का नाम नहीं लेता। अनेक दलों के अध्यक्ष स्थायी अध्यक्ष बन जाते हैं। उन्हें हटाने के लिये अभियान चलाना पड़ता है, लेकिन उनके कान पर जूं नहीं रेंगती, वे टस से मस नहीं होते। हमारे यहां ऐसा नहीं है।

अटल जी कहा करते थे कि हमारा लोकतंत्र में विश्वास है। जीवन के सभी क्षेत्रों में हम लोकतांत्रिक पद्धति का अवलंबन करने के समर्थक हैं। अपने राजनीतिक दल को भी हम लोकतंत्रात्मक तरीके से चलाते हैं। निश्चित समय पर सदस्यता होती है। पुराने सदस्यों की सदस्यता का नवीकरण होता है, नये सदस्य बनाये जाते हैं। संगठन के विस्तार के लिए नये लोगों का आना जरूरी है। समाज के सभी वर्गों से और देश के सभी क्षेत्रों सें सभी पार्टी में अधिकाधिक शामिल हों, यह हमारा प्रयास होता है। किसी व्यक्ति या इकाई द्वारा अधिक से अधिक सदस्य बनाये जाते हैं, इस प्रतियोगिता में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन प्रतियोगिता पार्टी के अनुशासन और मर्यादा के अन्तर्गत होनी चाहिए।

उन्होने आगे कहा कि पार्टी के विस्तार के लिए नये सदस्य बनाना एक बात है और पार्टी पर कब्जा करने के लिये सदस्यता बढ़ाना दूसरी बात है। जब पार्टी का विस्तार करने के बजाय पार्टी पर अधिकार जमाने की विकृत मानसिकता पैदा होती है तब फिर जाली सदस्य भी बनाये जाते हैं। सदस्यता का शुल्क भी गलत तरीके से जमा किया जाता है। इससे पार्टी का स्वास्थ्य बिगड़ता है और दलों में प्रचलित इस बुराई को हमें अपने यहां बढ़ने से रोकना होगा। वर्षों से पार्टी में काम करने वाले लोग ऐसी बुराइयों के प्रति उदासीन नहीं हो सकते। पार्टी का जन-समर्थन बढ़ाना होगा, किन्तु उसे पद-लोलुपता से बचाना होगा। गुटबन्दी का पार्टी में कोई स्थान नहीं हो सकता।

कार्यकर्ता भाव ही नए कार्यकर्ता को अपने दल से जोड़ता है

इस ऐतिहासिक प्रशिक्षण वर्ग में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघ चालक और भाजपा के पालक सुदर्शन जी साथ ही भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय संगठन महामंत्री कुशाभाऊ ठाकरे भी मौजूद थे। भाजपा के अब तब हो रहे विस्तार में मूलप्राण ’कार्यकर्ता’ है। यही बात संगठनात्मक बैठकों में आज भी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहा करते हैं। उनका भी कहना है कि हम चाहे जितने बड़े नेता हों पर हमें मूल में कार्यकर्ता भाव से सदैव जुड़े रहना चाहिए। कार्यकर्ता भाव ही नए कार्यकर्ता को अपने दल से जोड़ता है।

इस प्रशिक्षण वर्ग में अटल जी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी पिछले कुछ वर्षों में अपना प्रभाव और शक्ति बढ़ाने में सफल हुई है। इसके पीछे एक चिन्तन है, एक विचारधारा है। मैं अभी-अभी परिसर में पं. दीन दयाल उपाध्याय की मूर्ति का अनावरण करके आया हूं। वह महान चिंतक और कुशल संगठनकर्ता थे। उनकी विशेषता पुराने चिन्तन को देश और काल के परिप्रेक्ष्य में उपस्थित करने में थी। समय के साथ समस्याओं का रूप बदलता है, नयी समस्याएं खड़ी होती हैं, कुछ पुरानी समस्याएं नये स्वरूप मे आती हैं। उन समस्याओं को अलग करने के लिये मूलभूत चिन्तन के आधार पर नयी व्याख्याएं और नयी व्यवस्थाएं बनानी पड़ती हैं।

वर्ग में उन्होने आगे कहा कि हम एक आदर्श राज्य की स्थापना चाहते हैं इसलिये प्रारंभ में धर्म राज्य की बात कही, बाद में अयोध्या आन्दोलन के प्रकाश में हमने रामराज्य की स्थापना को अपने लक्ष्य के रूप में लोगों के सामने रखा। धर्म राज्य और रामराज्य में कोई अन्तर नहीं है। दोनों में लक्षण समान हैं किन्तु कभी-कभी समय में परिवर्तन के साथ कोई शब्दावली अधिक आकृष्ट हो जाती है।

प्रभात झा लिखते हैं अटल जी की मान्यता रही कि भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रीय विकल्प के रूप में उभरी है। हमारी बढ़ती हुई शक्ति और प्रभाव से आतंकित होकर भिन्न-भिन्न विचारों वाले हमारे इर्द-गिर्द जमघट बना रहे हैं। पहले कांग्रेस के विरुद्ध गैर कांग्रेसी हवा चलती थी। अब भाजपा के विरुद्ध एकत्रीकरण हो रहा है। यह एकत्रीकरण टिकेगा नहीं। हमें यह समझ लेना चाहिए कि यदि हमारी प्रगति में रुकावट आयेगी, जो हमारी अपनी ही कमियों और खामियों के कारण आयेगी, हमारे विरोधियों के कारण नहीं। भारतीय जनता पार्टी के साथ आज देश का भविष्य जुड़ गया है हमें बहुमत प्राप्त हो या न हो, हमारे विरोधी चाहें या न चाहें, भारतीय जनता पार्टी का भविष्य और देश का भविष्य एक-दूसरे से सम्बद्ध हो गये हैं। इस ऐतिहासिक अवसर पर हम पिछड़ जायें, हार मान जायें, छोटे-छोटे विवादों में फंस जायें तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी क्षमा नहीं करेगी। देश की स्थिति पर और संगठन की आवश्यकता पर हम कार्यकर्ता के नाते विचार करें, कार्यकर्ता के नाते ही व्यवहार करें। हम चाहे जितनी बड़ी सत्ता हासिल कर लें या हम चाहे जितनी ऊंचाई पर चले जाएं, पर हमें और हमारे संगठन को इतनी ऊंचाई पर जिन कार्यकर्ताओं और जनता जनार्दन ने पहुंचाया, उन्हें हमें अपनी आंखों से कभी ओझल नहीं करना चाहिए। हमारी सफलता सुनिश्चित है। और आवश्यकता है चिन्तन के अनुरूप सही व्यवहार करने की।

अटल जी का प्रशिक्षण वर्ग में दिया गया उद्बोधन और उनका एक-एक वाक्य हमारे लिये आज भी प्रेरणादायक है। उनकी पुण्यतिथि पर उनके दिये गए विचारों पर यदि हम सदैव चिंतन करते रहे और सदैव चलते रहे तो न हम भटकेंगे और न ही हम देश को भटकने देंगे।

0 comments: