एक साल पहले जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में अनुच्छेद 370 प्रभावी था। तक़रीबन एक साल पहले अनुच्छेद 370 को हटाया गया और जम्मू-कश्मीर को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। इसी के साथ लद्दाख को भी एक अलग केंद्र शासित प्रदेश की पहचान मिली। इसके बाद वहां पिछले एक साल में क्या कुछ हुआ और कितना विकास हुआ? इसका जायजा आज हम पहाड़ों की जिंदगी से लेंगे।
दरअसल पहाड़ों की जिंदगी बेहद मुश्किल भरी होती है। वहां रहने वाले लोगों के लिए कहीं आना-जाना बड़ा मुश्किल भरा काम होता है। लेकिन दुर्गम पहाड़ी इलाकों में यदि अच्छी सड़कें हो तो यह काम भी आसान हो सकता है। इसलिए पहाड़ों में रहने वाले लोगों के लिए सड़कें सिर्फ आने-जाने का जरिया मात्र नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास को मजबूती प्रदान करने की सबसे अहम कड़ी है। जम्मू-कश्मीर में अब ऐलान किया गया है कि प्रदेश की 11 हजार किलोमीटर लंबी सड़कों का मैकडेमाईजेशन किया जाएगा। साथ ही ब्लैक टॉप के साथ राज्य में पक्की सड़कों का निर्माण किया जाएगा ताकि किसी को भी दिक्कत न हो।
जम्मू-कश्मीर की बदहाल सड़कों की हालत सुधरेगी
कश्मीर के ऊँचे-ऊँचे पहाड़ी इलाकों में गाड़ी चलाना, सफर करना आसान काम नहीं। कुदरत ने जो भौगोलिक चुनौतियां खड़ी की हैं वो अपनी जगह हैं। पर यहां के सफर को मौसम और कई साल से चले आ रहे भ्रष्टाचार ने और भी मुश्किल बना दिया है। दो साल में बनने वाली सड़कों को कहीं बर्फ ने पी लिया तो कही भ्रष्टाचार ने खा लिया। यह सिलसिला यूं ही चलता रहा और राज्य की तमाम सड़कों की हालत बद से बदतर होती गई।
अगले एक से दो साल में सभी सड़कों का रूप बदल जाएगा
लेकिन अब जम्मू कश्मीर की सड़कें नये सफर पर निकल पड़ी हैं। पूरे राज्य में सड़कों के मैकडेमाईजेशन का काम जोर-शोर से चल रहा है। उड़ी में दुर्गम पहाड़ियों पर बसे गरकोट गांव जाने वाले रास्ते का नज़ारा अब बिल्कुल बदल चुका है। यहां तेजी से सड़क बनाने का काम किया जा रहा है। ऐसे ही घाटी के अन्य इलाकों में भी सड़क निर्माण कार्य तेजी से किए जा रहे हैं।
11 हजार किलोमीटर लंबी सड़कों के मैकडेमाईजेशन का काम जारी
जम्मू-कश्मीर में सड़कों के महत्व को समझते हुए ही केंद्र सरकार ने पूरे राज्य की 11 हजार किलोमीटर लंबी सड़कों के मैकडेमाईजेशन का फैसला लिया है। यह काम अगले एक से दो साल में पूरा कर लिया जाएगा और इस पर तेजी से काम चल भी रहा है।
उड़ी में पहाड़ियों पर बसे गरकोट गांव की बदली सूरत
उड़ी के गरकोट गांव में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़क निर्माण कार्य किया जा रहा है। गांव में सड़क बनते देखकर गांव के लोग भी बेहद खुश हैं। उन्हें लगता है कि इसी सड़क से आने वाले समय में उनकी जिंदगी बदलेगी। गरकोट के सरपंच शब्बीर अहमद नाईक कहते हैं कि “मैं तो नहीं बोलता, काम बोलता है और यहां बहुत अच्छा काम हो रहा है। इसके लिए हम सरकार के प्रति शुक्रगुज़ार हैं। सरकार ने हमें यह सड़क दी है। इससे सड़क के अभाव में अभी तक हो रही सभी परेशानियां एक झटके में खत्म हो गई।”
देर शाम तक होता है सड़क निर्माण का काम
एग्जीक्यूटिव इंजीनियर शाहजहाँ पीर बताते हैं कि पूरी घाटी में सड़कों के मैकडेमाईजेशन के लिए समय बहुत कम रहता है। यह समय महज 15 जून से 15 अक्टूबर तक रहता है। इसमें से बरसात के दिन भी यदि काट दिए जाएं तो और भी कम समय बच पाता है। इसमें हम कोशिश यही कर रहे हैं कि प्रत्येक बचे हुए दिन के समय को अच्छी तरह से इस्तेमाल करें। वर्तमान में उड़ी के पहाड़ी इलाकों में मैकडेमाईजेशन का काम जारी है। वहां से नीचे आने में तकरीबन एक से डेढ़ घंटे का समय लग जाता है। इन सबके बावजूद हम अपने निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। हमारा जो बेसिक टारगेट है वो पीएमजीएस (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) से गांव को जोड़ना है। गांव जाने वाली प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से ही गांव के लोगों का उद्धार होगा क्योंकि इससे उनका आर्थिक और सामाजिक विकास जुड़ा हुआ है।
सड़क निर्माण के काम में स्थानीय लोगों को मिल रहा है रोज़गार
कोरोना के कारण इन दिनों प्रदेश में बाहर से आने वाले मजदूर भी न के बराबर हैं। लेकिन अच्छी बात यह रही कि इसका सड़कों के निर्माण कार्य पर कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि स्थानीय मजदूर सड़क बनाने में लगे हैं और इससे यहां लोगों को रोज़गार भी मिल रहा है।
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