सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में अपेक्षाकृत कम लोगों ने आत्महत्या की और इस राज्य में यह आंकड़ा केवल 3.9 प्रतिशत रहा. लेकिन उत्तर प्रदेश के लिए सतर्क होने की बात ये है कि साल 2018 में यहां आत्महत्या के आंकड़े 4849 थे, जो साल 2019 में बढ़कर 5464 हो गए.
⭕10 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर World* Suicide Prevention Day मनाया जाता है. अगर देखें, तो पिछले कुछ साल से भारत ही नहीं दुनिया भर में खुदकुशी की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. हम आर्थिक विकास की दौड़ में भाग रहे हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य में कहीं पीछे रह गए हैं. साल 2018 में आई WHO की रिपोर्ट ने हमें चेतावनी दी थी कि भारत में खुदकुशी किस तरह महामारी का रूप लेती जा रही है. विश्व के शीर्ष 20 देश, जहां लोग हर पल अपनी जान देने को उतारू रहते हैं, उनमें भारत भी शुमार था. अब भी एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में करीब 8 से 10 लाख लोग खुद अपनी जान दे देते हैं. ऐसे में हताशा और निराशा की कल्पना की जा सकती है. कोरोना काल में ये आंकड़ा बढ़ा जरूर है, लेकिन पहले भी आत्महत्या की दर कोई कम नहीं थी. हर 40 सेकेंड पर एक शख्स कहीं न कहीं अपने हाथों से अपनी जिंदगी खत्म कर रहा था.
भारत में हालात और बिगड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने देशभर में वर्ष 2019 में हुई आत्महत्याओं के आंकड़े जारी किए. इनके मुताबिक भारत में 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की. यानि देश में हर रोज करीब 381 लोगों ने अपने हाथ से अपनी जिंदगी खत्म कर ली. ताजा आंकड़े वर्ष 2018 की तुलना में करीब 3.4 फीसद ज्यादा हैं. सीधा मतलब ये है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है. एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 में शहरों में आत्महत्या की दर 13.9 फीसद रही है जो पूरे भारत में आत्महत्या की दर 10.4 फीसद से अधिक थी. सोचिए, बेहतरी की रेस में हम अपनी मानसिक शांति और दिखावे के चक्कर में अपने अपने रिश्ते खोते जा रहे हैं.
⭕भारत में आत्महत्या की बढ़ती महामारी
चौंकाने वाली बात ये है कि भारत में आत्महत्या की दर ग्लोबल एवरेज से 60 फीसदी से भी ज्यादा है. देश में मानसिक रूप से बीमार रहने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. हालांकि ये हैरान वाला विषय है कि आखिर भारत में लोगों का मानसिक स्वास्थ्य क्यों खराब है? विश्व स्वास्थ्य संगठन की साल 2018 की रिपोर्ट में एक बात खास थी - वो ये कि आत्महत्या की दर उन देशों में काफी कम थी, जहां लोग युद्ध से तबाह हो रहे हैं, लेकिन उन देशों में ज्यादा थी जो निम्न मध्यमवर्गीय हैं और विकास के लिए तनाव और अवसाद की जिंदगी जी रहे हैं. भारत में भी कहीं न कहीं शहरी जीवन की आपाधापी अवसाद में धकेल रही है.
पारिवारिक कलह और बीमारी ले रही है जान
NCRB के ताजा आंकड़ों के मुताबिक करीब 32.4 फीसद मामलों में लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के चलते अपनी जिंदगी खत्म की तो 17.1 फीसद लोगों ने बीमारी से परेशान होकर ये खौफनाक फैसला लिया. वहीं 5.5 प्रतिशत लोगों ने वैवाहिक समस्याओं के चलते ऐसा कदम उठाया और 4.5 फीसद लोगों ने प्रेम संबंधों को लेकर जान दे दी. करीब दो फीसद लोगों की आत्महत्या करने की वजह बेरोजगारी और एग्जाम में फेल होना रही. 5.6 फीसद लोगों ने ड्रग एडिक्शन के चुंगल में फंसकर अपनी जान गंवाई.
⭕महिलाओं की तुलना में पुरुषों ने ज्यादा की खुदकुशी
आमतौर पर संघर्षशील माने जाने वाले भारतीय पुरुषों ने आत्महत्या ज्यादा की है. NCRB के आंकड़े बताते हैं कि 100 मामलों में से 70.2 फीसदी पुरुषों ने खुदकुशी की जबकि 29.8 फीसदी महिलाओं ने जान दी. रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में आत्महत्या के मामलों में 53.6 फीसद लोगों ने फांसी लगाकर, 25.8 फीसद ने जहर खाकर, 5.2 फीसद लोगों ने पानी में डूबकर, 3.8 फीसद लोगों ने आत्मदाह कर अपना जीवन खत्म किया.
*⭕महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा आत्महत्या *
आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में दर्ज हुए हैं. यहां वर्ष 2019 में 18,916 लोगों ने आत्महत्या कर ली. इसके बाद तमिलनाडु में ये आंकड़ा 13,493, पश्चिम बंगाल में 12,665, मध्य प्रदेश में 12,457 और कर्नाटक में 11,288 रहा है. पूरे देश में हुई आत्महत्याओं के मामलों में से अकेले इन 5 राज्यों में ही करीब 49.5 फीसद मामले सामने आए हैं.
⭕यूपी में आबादी ज्यादा, खुदकुशी कम
सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में अपेक्षाकृत कम लोगों ने आत्महत्या की और इस राज्य में यह आंकड़ा केवल 3.9 प्रतिशत रहा. लेकिन उत्तर प्रदेश के लिए सतर्क होने की बात ये है कि साल 2018 में यहां आत्महत्या के आंकड़े 4849 थे, जो साल 2019 में बढ़कर 5464 हो गए. यानि प्रदेश में आत्महत्या के आंकड़ों में 12.7 फीसदी की वृद्धि हुई है. प्रदेश में औद्योगिक सिटी माने जाने वाले कानपुर में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं हुईं. साल 2019 में यहां 492 लोगों ने अपनी जान दे दी. हालांकि साल 2018 में भी यहां 480 लोगों ने खुदकुशी की थी. इसके बाद खुदकुशी के मामले में उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद, आगरा, लखनऊ और मेरठ जैसे शहरों का नंबर रहा.
⭕jउत्तराखंड में आबादी कम, फिर भी बढ़े सुसाइड रेट बढ़ा
वहीं उत्तराखंड की बात करें तो यहां आबादी काफी कम है. लेकिन आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा यहां भी बढ़ा है. उत्तराखंड में साल 2018 में 421 लोगों ने आत्महत्या की थी, लेकिन साल 2019 में ये आंकड़ा 516 पहुंच गया. यानि प्रदेश में खुदकुशी की दर में 22.6 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है.
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