यह पुरस्कार हर साल विकासशील देशो में युवा गणितज्ञों को दिया जाता है, जो 45 वर्ष से कम आयु के हैं. यह पुरस्कार श्रीनिवास रामानुजन की स्मृति में प्रदान किया जाता है.
युवा गणितज्ञों का रामानुजन पुरस्कार 2020 एक आभासी समारोह में 09 दिसंबर 2020 को ब्राजील के रियो डी जनेरियो स्थित इंस्टीट्यूट फॉर प्योर एंड एप्लाइड मैथेमेटिक्स (आईएमपीए) की गणितज्ञ डॉ. कैरोलिना अरुजो को प्रदान किया गया. यह पुरस्कार हर साल वितरित किया जाता है.
हर साल किसी विकासशील देश के एक शोधकर्ता को दिया जाने वाला और आईसीटीपी (इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेटिकल फ़िज़िक्स) एवं अंतरराष्ट्रीय गणितीय संघ के सहयोग से भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित यह पुरस्कार डॉ. कैरोलिना को बीजगणितीय ज्यामिति में उत्कृष्ट कार्य के लिए दिया गया.
उनका शोध कार्य बाईरेशनल ज्यामिति पर केन्द्रित है. इसका उद्देश्य बीजगणितीय किस्म की संरचनाओं को वर्गीकृत करना और उनका वर्णन करना है. यह पुरस्कार सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र और अंतरराष्ट्रीय गणितीय संघ के सहयोग से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित है.
रामानुजन पुरस्कार: एक नजर में
यह पुरस्कार हर साल विकासशील देशो में युवा गणितज्ञों को दिया जाता है, जो 45 वर्ष से कम आयु के हैं. यह पुरस्कार श्रीनिवास रामानुजन की स्मृति में प्रदान किया जाता है. इसे इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेटिकल फ़िज़िक्स (ICTP) रामानुजन पुरस्कार भी कहा जाता है. यह पुरस्कार इटली में स्थित अंतर्राष्ट्रीय सैद्धांतिक भौतिकी केंद्र द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. इसके लिए फंड अल्बेल फंड के माध्यम से प्रदान किए जाते हैं.
अंतरराष्ट्रीय गणितीय संघ
यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है. यह अंतरराष्ट्रीय गणितज्ञ कांग्रेस का एक सदस्य है. इस संघ का मुख्य उद्देश्य गणित और अन्य अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक बैठकों और सम्मेलनों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है.
डॉ. कैरोलिना अराजू
वे यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली गैर-भारतीय महिला गणितज्ञ हैं. वे ज्यामिति, बीजीय ज्यामिति, फ़ानो वैरायटी और फ़ोलिएशन में विशेषज्ञ है. इसके अलावा, वह अंतरराष्ट्रीय गणितीय संघ में उपाध्यक्ष हैं.
श्रीनिवास रामानुजन: एक नजर में
श्रीनिवास रामानुजन एक भारतीय गणितज्ञ थे. उन्होंने संख्या सिद्धांत, गणितीय विश्लेषण, अनंत श्रृंखला और निरंतर अंशों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनके कार्यो को एक अंग्रेजी गणितज्ञ हार्डी द्वारा पहचाना गया. हार्डी ने साल 1913 में रामानुजन को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया. हालांकि, साल 1919 में, हेपेटिक अमीबासिस ने रामानुजन को भारत लौटने के लिए मजबूर किया. बाद में, वे तपेदिक से पीड़ित हुए.
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