विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया में स्वास्थ्य के मोर्चे पर लड़ाई के लिए नया संगठन बनाया है, अनिल सोनी इसके पहले CEO बने हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारतीय अनिल सोनी को मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) बनाया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया में स्वास्थ्य के मोर्चे पर लड़ाई के लिए नया संगठन बनाया है, अनिल सोनी इसके पहले CEO बने हैं.
डब्ल्यूएचओ विश्व स्वास्थ्य के लिए 01 जनवरी 2021 से धन संग्रह की दिशा में एक अभियान चलाएगा. इसकी कमान अनिल सोनी को दी गई. अनिल सोनी को साल 2023 तक एक बीलियन डॉलर की रकम इकट्ठा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
अनिल सोनी 1 जनवरी से काम संभालेंगे
अनिल सोनी को नवगठित डब्ल्यूएचओ फाउंडेशन का पहला मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) नियुक्त किया गया है. यह फाउंडेशन दुनियाभर में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों को हल करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ मिलकर काम करेगा. फाउंडेशन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि सोनी 01 जनवरी 2021 को अपना पदभार संभालेंगे.
उनका मुख्य फोकस
इस दौरान उनका मुख्य फोकस दुनिया में स्वास्थ्य क्षेत्र में नई तकनीक का इस्तेमाल और उनका आम लोगों को फायदा पहुंचाने पर रहेगा. डब्ल्यूएचओ ने कोरोना संकट के बीच मई 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन फाउंडेशन की शुरुआत की थी. डब्ल्यूएचओ फाउंडेशन का मुख्यालय जेनेवा में है.
अनिल सोनी के बारे में
अनिल सोनी साल 2002 से साल 2004 तक कार्यकारी निदेशक के सलाहकार के तौर पर एड्स, क्षय रोग और मलेरिया से लड़ने के लिए ग्लोबल फंड के साथ काम करते थे.
उन्होंने साल 2004 से साल 2005 तक फ्रेंड्स ऑफ द ग्लोबल फाइट के संस्थापक कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्य किया है.
अनिल सोनी क्लिंटन हेल्थ एक्सेस इनिशिएटिव के सीईओ भी रह चुके हैं. जहां उन्होंने साल 2005-2010 तक काम किया और संगठन का तेजी से विस्तार किया है.
अनिल सोनी बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और MDG हेल्थ एलायंस जैसी कंपनियों में सीनियर एक्सपर्ट के तौर पर काम कर चुके हैं.
उन्होंने मैकिन्से और हार्वर्ड कॉलेज से पढ़ाई की है. अनिल सोनी द मार्शल प्रोजेक्ट के बोर्ड में काम भी करते हैं.
उन्होंने दो दशकों से भी ज्यादा समय तक कम और मध्यम आय वाले देशों में हेल्थकेयर को लेकर पब्लिक, प्राइवेट और नॉन प्रॉफिटेबल संस्थाओं के लिए कम किया है.
उन्होंने एचआईवी बीमारी के साथ पैदा हुए बच्चों की दवाओं की कीमत 75 प्रतिशत कम कराने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. एचआईवी की इस दवा को हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने मान्यता दे दी है.
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