वैशाखी के दिन को मलयालम समाज नये साल के रुप में मनाता है। इस दिन मंदिरों में विशुक्कणी के दर्शन कर समाज के लिये नव वर्ष का स्वागत करते है। इस दिन केरल में पारंपरिक नृत्य गान के साथ आतिशबाजी का आनन्द लिया जाता है। विशेष कर अय्यापा मंदिर में इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है। विशु यानी भगवान "श्री कृष्ण" और कणी यानी "टोकरी"
विशुक्कणी पर्व के नाम से जाना जाने वाले इस पर्व पर भगवान श्री कृ्ष्ण को टोकरी में रखकर उसमें कटहल, कद्दू, पीले फूल, कांच, नारियल और अन्य चीजों से सजाया जाता है। सबसे पहले घर का मुखिया इस दिन आंखें बंद कर विशुक्कणी के दर्शन करता है। कई जगहों पर घर के मुखिया से पहले बच्चों को देव विशुक्कणी के दर्शन कराये जाते है। नव वर्ष पर सबसे पहले देव के दर्शन करने का उद्देश्य, शुभ दर्शन कर अपने पूरे वर्ष को शुभ करने से जुडा हुआ है।
☘ असम में वैशाखी पर्व का एक नया रुप "बिहू" :
वैशाखी पर्व को असमिया समाज एक नये रुप में मनाता है। यहां यह पर्व दो दिन का होता है। वैशाखी से एक दिन पहले असम के लोग बिहू के रुप में इस पर्व को मनाते है। जिसमें मवेशियों कि पूजा की जाती है। तथा ठीक वैशाखी के दिन यहां जो पर्व मनाया जाता है, उसे रंगीली बिहू के नाम से जाना जाता है।
इस दिन असम में कई सांस्कृतिक आयोजन किये जाते है। क्योकि कोई भी पर्व बिना व्यंजनों के पूरा नहीं होता है। इसलिये खाने में इस दिन यहां "पोहे" के साथ दही का आनन्द लिया जाता है। असम का जीवन कृषि से जुड़ा हुआ होने के कारण लोग यह कामना करते है कि पूरे वर्ष अच्छी बारिश होती रहे।
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