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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

वैशाखी पर्व - "खालसा पंथ का स्थापना दिवस" :

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खेतों में जब फसल पक कर तैयार होने पर किसान खुशी से झूम उठता है। इसी खुशी में वैशाखी का पर्व मनाया जाता है। खुशहाली, हरियाली और अपने देश की समृ्द्धि की कामना करते हुए लोग इस दिन पूजा-अर्चना, दान-पुण्य़ व दीप जलाकर वैशाखी पर अपनी खुशी का इज़हार करते है। वास्तव में इस दिन जो भांगडा-नृत्य होता है, उसके पीछे यही भाव होता है कि सालभर की कडी मेहनत के बाद अच्छी फसल के रुप में धरती मां से उन्हें प्राप्त हुआ है। उसका स्वागत यहां के लोग खुशी मना कर करते है। देखा जाये तो यह नई फसल की कटाई का उत्सव है।

एक ओर यह पर्व जहां कृषि और किसानों से जुडा हुआ है। वही दूसरी ओर यह "खालसा पंथ" की स्थापना का भी दिन होने के कारण इस पर्व की महत्वता ओर भी बढ़ जाती है। यह दिन एक साथ अनेक खुशियां लेकर आता है। वैशाखी नववर्ष के आगमन का दिन है। सिख पंथ की स्थापना का दिन होने के कारण इसका अपना एक गौरवशाली इतिहास है।

⌛️ इतिहास के झरोखे से वैशाख मास :

वैशाख मास के पर्व न होकर, पर्वों का समूह है। सिक्खों के दूसरे गुरु श्री अंगद देव जी का जन्म इसी माह में हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना इसी दिन की थी। महाराजा विक्रमादित्य के द्वारा श्री विक्रमी संवत का शुभारंभ इसी दिन से हुआ था। भगवान श्री राम का राज्यभिषेक इसी दिन हुआ था। नवरात्रों का प्रारम्भ, सिंध प्रातं के समाज संत झूलेलाल का जन्म दिवस, महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना, धर्मराज युधिष्ठर का राजतिलक, महावीर जयंती आदि कई महत्वपूर्ण घटनाएं इस माह से जुडी हुई है।

☬ वैशाखी पर ੴ "खालसा पंथ की नींव" :

"खालसा" का शाब्दिक अर्थ शुद्ध, पवित्र है। सिक्खों के दंसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह ने आज ही के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस पंथ की स्थापना करने का उनका लक्ष्य तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त करना था। समाज से उंच-नीच की भावना को समाप्त करने के लिये भी वैशाखी के पवित्र दिन श्री गुरु गोविन्द ने "पंच प्यारे" नाम से उपाधि दी है।

ये पंच प्यारे अलग-अलग जाति के थे, जिन्हें अमृत पिलाया और इनके हाथों सें स्वयं अमृत पीकर सिंह नामक उपाधि प्राप्त की। इस प्रकार इस दिन से ही गुरु गोविन्द सिंह ने सिक्ख धर्म के साथ ही पूरे मानव समाज की धार्मिक, समाजिक विचारधारा को एक नया रुप रुप दिया। इस दिन गुरुद्वारों में विशेषकर आनंदपुर साहिब में अरदास, शबद कीर्तन सहित कडा प्रसाद वितरण, लंगर आदि का आयोजन किया जाता है।

खालसा पंथ के महत्व को समझने के लिये हमें 13 अप्रैल, 1699 के इतिहास में वापस जाना पडेगा। इस दिन श्री आनंदपुर साहिब में वैशाखी के दिन गुरु के कहे अनुसार दीवान सजाया गया था। सारा सिक्ख समाज यहां एकत्रित हुआ था। उसी समय सिक्खों के दंसवे गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह ने उठकर कहा कि धर्म और मानवता की रक्षा के लिये पांच शीश मांगें। यह सुन एकत्रित जन स्तब्ध रह गये।

उस भीड में से एक सिक्ख साहस करके उठा और कहा कि अपने धर्म की रक्षा के लिये मैं शीश देने के लिये तैयार हूं। इस सिख पुरुष का नाम था, दया राम, गुरु जी दया राम को तम्बू में लेकर गये और कुछ देर बाद खूंन से सजी तलवार लेकर वापस आये। वापस आकर उन्होंने ने एक अन्य शीश की मांग की, इस प्रकार यह सिलसिला पांच बार चला। हर बार गुरु खड़े होने वाले व्यक्ति को लेकर अपने तंम्बू में जाते और खूंन में सनी तलवार लेकर वापस आते।

पांचवी बार में सभी ने देखा की पांचों सिख "श्री साहिब" पोशाक धारण किये हुए तम्बू से बाहर आये। दंसवे गुरु ने इन्हें "पंच प्यारे" नाम दिया और अमृत चखा कर उन्हें सिख के रुप में मान्यता दी। इसी दिन से गुरु जी ने सिक्खों के लिये केस, कंघा, कडा, कच्छ व कृपाण धारण करना अनिवार्य कर दिया। इस प्रकार खालसा पंथ की स्थापना की।

🌾 वैशाखी पर्व देश के अन्य राज्यों में :

वैशाखी पर्व केवल सिक्ख समाज का पर्व नहीं है। अपितु इस दिन केरल, ओड़िशा, असम राज्यों में यह दिन नये वर्ष के आगमन का दिन होता है। इस दिन समाज में नये साल के आने की खुशी में संकल्प और नये कार्य प्रारम्भ किये जाते है।

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