🔺 छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में बौद्ध एवं जैन धर्म का उदय एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसका योगदान अविस्मरणीय रहा है। दोनों ही धर्मों ने भारतीय सांस्कृतिक जीवन को काफी प्रभावित किया है। इन दोनों धर्मों में समानता के साथ-साथ असमानता के तत्त्व भी रहे हैं जिसके कारण जैन धर्म, बौद्ध धर्म की अपेक्षा ज़्यादा व्यापक रूप से प्रसारित नहीं हो सका। इसे हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं
🔸 समानता के तत्त्व:
■ दोनों ही धर्मों ने वैदिक कर्मकांडों तथा वेदों की अपौरुषेयता का विरोध किया।
▪️ " अहिंसा तथा सदाचार पर दोनों ही धर्मों ने बल दिया।
▪️ कर्मवाद, पुनर्जन्म तथा मोक्ष दोनों ही धर्मों में शामिल थे।
▪️ दोनों धर्मों में प्रचार-प्रसार के लिये भिक्षु संघों की स्थापना पर बल दिया गया।
✍ Credit By - Pratap Chouhan 👨🏫
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🔺 उपरोक्त समानता के बावजूद भारत में जैन धर्म का उतना व्यापक प्रसार नहीं हो पाया जितना की बौद्ध धर्म का हुआ तथा जैन धर्म कुछ ही भागों में सीमित होकर रह गया, इसके निम्नलिखित कारण हैं
▪️ " बौद्ध धर्म ने मध्यम मार्ग पर बल दिया। इसके तहत मोक्ष के लिये कठोर साधना एवं कायाक्लेश में विश्वास नहीं किया जाता था। परंतु जैन धर्म में मोक्ष के लिये घोर तपस्या तथा शरीर त्याग को आवश्यक माना गया।
▪️ " बौद्ध धर्म आत्मा में विश्वास नहीं करता था, जबकि जैन धर्म में इसकी प्रधानता विद्यमान थी।
▪️ बौद्ध धर्म की अपेक्षा जैन धर्म में अहिंसा एवं अपरिग्रह पर अधिक बल दिया गया है। इस संदर्भ में उनके विचार अतिवादी थे।
▪️ " जैन धर्म में नग्नता को अनिवार्य माना गया था जो बौद्ध धर्म में अनुपस्थित था।
▪️ " गौतम बुद्ध द्वारा तत्कालीन समाज में विद्यमान कुरीतियों पर जिस प्रकार से कुठाराघात किया गया था, उस प्रकार से महावीर द्वारा नहीं किया गया था।
🔸 अत: उपरोक्त कारणों पर यदि गौर करें तो स्पष्ट होता है, कि बौद्ध धर्म जैन धर्म के सापेक्ष अधिक लचीला था जो सर्वसाधारण के लिये आसानी से अनुकरणीय था। साथ ही, बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में जनसाधारण के लिये सर्वसुलभ भाषा मगधी को अपनाया गया जिसके कारण भी इसकी लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई। तत्कालीन बदलती समाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ भी बौद्ध धर्म को लोकप्रिय बनाने में काफी महत्त्वपूर्ण रहीं। बावजूद इसके कि जैन धर्म का प्रसार बौद्ध धर्म की अपेक्षा कम रहा हो लेकिन भारतीय संस्कृति पर इसका योगदान अविस्मरणीय रहा है।
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