34 साल में पूरी दुनिया ने काफी तरक्की की है, आज के समय में सभी देश वैश्विक पटल पर खुद को स्थापित करने और आगे बढ़ने में लगे हुए है। नई-नई टेक्नोलॉजी और मशीनी युग में सभी देश एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में लगे हैं। ऐसे में युवाओं के देश भारत भी आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है। इसलिए सबसे पहले जरूरत हुई 34 साल पहले हुई शिक्षा व्यवस्था में बदलाव और कुछ सृजनात्मक बनाने की। जिससे देश के युवा वैश्विक मंच पर खुद को स्थापित कर सकें। दिशा में सरकार ने बड़ा फैसला भी लिया है।
बौद्धिक ज्ञान के साथ छात्र के कौशल के लिए बदलाव जरूरी
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार सियाराम पांडेय 'शांत' का कहना है कि नई शिक्षा नीति से छात्रों का होगा बहुमुखी विकास होगा। यानी सिर्फ बौद्धिक ज्ञान के साथ छात्र के अंदर के कौशल को भी आगे बढ़ाया जायेगा। इसके लिए गुणवत्ता सुधारने की शुरुआत स्कूली शिक्षा से करने के लिए हर पांच साल में समीक्षा होगी। अभी देखा जाए तो शिक्षा की समीक्षा होती ही नहीं थी। नई शिक्षा नीति के तहत अब वर्ष 2022 के बाद पैराटीचर नहीं रखे जाएंगे। शिक्षकों की भर्ती सिर्फ नियमित होगी। रिटायरमेंट से पांच साल पहले शिक्षकों की नियुक्ति का काम केंद्र और राज्य शुरू कर देंगे। सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि नई शिक्षा नीति 21वीं सदी के 'नए भारत' की जरूरतों को पूरा करेगी।
नई शिक्षा नीति में केंद्र सरकार ने स्कूल पाठ्यक्रम के 10+2 ढांचे की जगह 5+3+3+4 की नयी पाठयक्रम संरचना लागू की है जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 साल की उम्र के बच्चों के लिए है। इसमें 3 से 6 साल तक के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने की योजना है, जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के अहम चरण के रूप में मान्यता दी गई है। छात्र को पसंदीदा विषय चुनने के लिए कई विकल्प दिए जाएंगे। कला एवं विज्ञान के बीच, पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच और व्यावसायिक एवं शैक्षणिक विषयों के बीच कोई भिन्नता नहीं होगी।
रोजगार परक शिक्षा पर ध्यान
नई शिक्षा नीति के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाया जाएगा। शिक्षा में कुल जीडीपी का अभी करीब 4.43 फीसदी खर्च हो रहा है, लेकिन उसे 6 फीसदी करने का लक्ष्य है। केंद्र एवं राज्य मिलकर इस लक्ष्य को हासिल करेंगे। हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं के अलावा आठ क्षेत्रीय भाषाओं में भी ई-कोर्स कराने, वर्चुअल लैब के जरिये कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जायेगा। इसके साथ ही नेशनल एजुकेशन टेक्नॉलोजी फोरम बनाया जा रहा है। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना होगी जिससे अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
शिक्षा के स्तर को इस तरह से रखा गया है कि अगर कोई छात्र 8वीं तक या 12वीं तक या स्नातक करने के बाद कभी भी रोजगार के लिए देश के किसी भी कोने में जाये या फिर देश से बाहर जाये तो उसे भाषाई परेशानियों का सामना न करना पड़ा। इसके लिए भाषा का विकल्प होगा और अन्य देश के भाषा सीखने का भी विकल्प रखा गया है।
पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा में पढ़ाई का फैसला किसी भी बच्चे पर भाषा थोपना नहीं है। इसका मकसद छोटे बच्चों को संस्कृति से जोड़ते हुए सीखने की प्रवृति को बढ़ाना है। घर में मातृभाषा का ही प्रयोग होता है, ऐसे में छात्र जब उसी भाषा में सीखेगा तो उसे हमेशा याद रहेगा। माना जा रहा है कि नई शिक्षा नीति से शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी। गुणवत्ता युक्त स्कूली और उच्च शिक्षा से रोजगार भी बढ़ेगा। इसीलिए छठवीं कक्षा से व्यावसासिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को जोड़ा गया है। अब छात्र कैंपस से बाहर निकलेंगे तो उनके पास ज्ञान ही नहीं, हुनर भी होगा। अब बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक लेने के लिए कोचिंग की जरूरत नहीं रहेगी। या यूं कहें कि कोचिंग की दुकानदारी बंद हो जाएगी। क्योंकि अब रट्टा की बजाय प्रैक्टिकल अधिक होगा।
किसी कारण वश समेस्टर पूरा नहीं होने पर भी है विकल्प
गौर करें तो नई शिक्षा नीति में लॉ और मेडिकल शिक्षा को छोड़कर उच्च शिक्षा के लिए एकल नियामक की व्यवस्था की गई है। नई नीति में बहु स्तरीय प्रवेश एवं निकासी व्यवस्था की गई है। वर्तमान चार साल इंजीनियरिंग पढ़ने या 6 सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ पाते हैं तो कोई उपाय नहीं होता, लेकिन बहु स्तरीय प्रवेश एवं निकासी व्यवस्था लागू होने पर एक साल के बाद सर्टिफिकेट, 2 साल के बाद डिप्लोमा और 3-4 साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। जो छात्र शोध करना चाहते हैं, उनके लिए 4 साल का डिग्री कार्यक्रम होगा, जबकि जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वे तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे। नयी व्यवस्था में एमए और डिग्री कार्यक्रम के बाद एफफिल करने से छूट की भी एक व्यवस्था की गई है।
परीक्षाएं तनाव का कारण न बनें
देश किसी वजह से पढ़ाई छूट जाने या एक स्थान से दूसरे स्थान जाने पर छात्रों की परीक्षा छूट जाती है या उसकी वजह से उन्हें पढ़ाई में पीछे होना पड़ता है और साल बर्बाद होता है। ऐसे में नई शिक्षा नीति के तहत साल में बोर्ड परीक्षा एक से अधिक बार भी हो सकती है। इन्हें ऑनलाइन आयोजित करने जैसे विकल्पों पर भी कार्य किए जाने की जरूरत है ताकि बोर्ड परीक्षाएं तनाव का कारण नहीं बनें और इनके नतीजे छात्रों के लिए आनंददायक हों। राष्ट्रीय पुलिस यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी का प्रस्ताव भी लाया जा रहा है। इसके अलावा टॉप 100 विश्वविद्यालयों में पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रमों को शुरू करने की योजना तैयार हो रही है।
2022 की परीक्षा नए पाठ्यक्रम से होगी। जाहिर इससे बच्चों को मोटी-मोटी किताबें नहीं पढ़नी पड़ेंगी। नई नीति में बच्चों को हर विषय के मूल सिद्धांत को आसान तरीकों से समझाया जाएगा। ऐसे में पूरा जोर लिखित परीक्षा की जगह प्रयोगात्मक परीक्षा पर होगा। पढ़ाई का फोकस और कांस्पेट्स, आइडिया, एप्लीकेशन, प्रैक्टिकल, प्रॉब्लम साल्विंग पर रहेगा।
(इनपुट- हिन्दुस्थान समाचार)
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