Follow Us 👇

Blood Circulation ( परिसंचरण तंत्र )।।

परिसंचरण तंत्र संबंधित प्रश्नोत्तरी ।। 1. कौन सा ‘जीवन नदी’ के रूप में जाना जाता है? उत्तर: रक्त 2. रक्त परिसंचरण की खोज की गई? ...

वैक्सीन का इतिहास।।

विश्‍व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान आज से शुरू हो चुका है। कोविड-19 का टीका देश के हर कोने में पहुंचाया जा रहा है। इससे पहले भी दुनिया चेचक, प्लेग, हैजा, टेटनस, रेबीज आदि जैसी अन्य महामारी का सामना कर चुकी है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वैक्सीन का अविष्कार किस प्रकार और किन परिस्थितियों में हुआ? दरअसल, ऐसा माना जाता है कि दुनिया की सबसे पहली वैक्सीन का ईजाद 1796 में हुआ था। यह स्मॉल पॉक्स या चेचक की वैक्सीन थी और इसके अविष्कारक थे एडवर्ड जेनर। 

महामारी के बीच दुनिया की पहली वैक्सीन 

प्रसार भारती से बातचीत में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के बर्किघम एंड वुमेन्स हॉस्पिटल में एमडी, ब्रेडले एम व्रथेम ने बताया कि 1796 में महामारी के दौरान एडवर्ड जेनर ने एक ग्वाले के हाथ में बने काउ पॉक्स के घाव से इंजेक्शन में पस निकालकर उसे 13 साल के एक बच्चे को लगा दिया था। इस काउ पॉक्स वाले पस की वजह से बच्चे में स्मॉल पॉक्स के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई थी। इसे ही दुनिया का पहला वैक्सीनेशन माना जाता है। वह आगे बताते हैं कि काउ पॉक्स वाले वायरस का नाम वैक्सीनिया था तो इलाज के इस तरीके को 'वैक्सीन' का नाम दे दिया गया और इसी तरह दुनिया को अपनी पहली वैक्सीन मिली।

साल 165 से मानी जाती है महामारी की शुरुआत 

गौरतलब है कि इससे पहले भी कई महामारियां फैल चुकी थीं। इतिहास में दर्ज महामारियों की बात करें तो सबसे पहली महामारी एन्टोनाइन प्लेग से मानी जाती है जो वर्ष 165 में फैली थी। गेलेने के प्लेग के नाम से जाने वाली इस बीमारी ने तत्कालीन एशिया, मिस्र, यूनान (ग्रीस) और इटली को सबसे ज्यादा प्रभावित किया था। हालांकि, इस महामारी का स्रोत किसी को नहीं पता है। आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक और वायरल डिसीज की इंचार्ज, डॉ. निवेदिता गुप्ता कहती हैं कि कई लोगों का मानना है कि इसका सबसे बड़ा कारण चेचक या स्मॉलपॉक्स है। मगर इस बारे में पक्के तौर पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। यह केवल चिकित्सकीय तौर पर ही पता लगाया जा सकता है। इस महामारी से तकरीबन 50 लाख लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। 

द ब्लैक डेथ और जस्टिनियन प्लेग का कहर 

साल 1346 से 1353 के दौरान यूरोप में प्लेग महामारी फैली थी। एमडी ब्रेडले एम व्रथेम बताते हैं कि इसका सबसे ज्यादा प्रभाव अफ्रीका और एशिया में रहा। इस द ब्लैक डेथ के नाम से भी जाना जाता है और इसमें कुल 7.5 करोड़ से 20 करोड़ लोगों की जान गई थी। इस महामारी के फैलने का कारण चूहों को माना जाता है। यह पहले चूहों से और फिर कीड़ों के जरिए मनुष्य को संक्रमित करता है। ब्रेडले बताते हैं कि यह जहाजों के जरिए पूरी दुनिया तक पहुंचा था। ऐसे ही जस्टिनियन का प्लेग, साल 541 से 542 के बीच पूरे यूरोप में फैल चुका था। डॉ निवेदिता गुप्ता बताती हैं कि महज एक साल में इस महामारी से 2.5 करोड़ लोगों की जान गई थी। हालांकि, इसकी शुरुआत कहाँ से हुई यह कहना मुश्किल है। 

चेचक से लेकर टीबी तक ऐसे बने सभी टीके 

वैक्सीन के ही अविष्कार में अगर आगे चलते चलें तो, 1853 में पूरे ब्रिटेन में स्मॉल पॉक्स के टीके को लगवाना सभी के लिए अनिवार्य कर दिया गया था। इसके बाद 1897 में लुईस पॉश्चर ने कॉलरा का टीका बनाया। साल 1900 के बाद से ही अलग-अलग महामारी को लेकर और इससे जुड़े टीके के लिए सभी लोग प्रयास में लग गए थे।इसमें सबसे पहले 1920 से 1926 के दौरान टीबी, डिफ्थीरिया, टेटनस और काली खांसी के टीके बनाये गए। इसके बाद 1944 में फ्लू के टीके को बनाया गया। यहां तक कि 19वीं शताब्दी के आखिर तक प्लेग की वैक्सीन की भी खोज कर ली गई थी।
⭕️14वीं शताब्दी से शुरू हुई थी पोलियो की बीमारी

1789 से पोलियो को एक गम्भीर बीमारी के रूप में देखा जाने लगा तक। एमडी ब्रेडले एम व्रथेम पोलियो के बारे में कहते हैं कि यह बीमारी काफी पहले से दुनिया में है। मिस्र के एक पत्थर में एक आदमी को देखकर बताया जा सकता है कि पोलियो महामारी 1365 से 1403 के बीच भी दुनिया में थी। सेन्टर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, माइकल अंडरवुड ने सबसे पहले 1789 में इंग्लैंड में एक बच्चे के पैरों में दुर्बलता को पोलियोमाइलाइटिस के रूप में पहचाना था। लेकिन ये रोग 19 वीं शताब्दी के अंत तक में यह महामारी के रूप में देखा जाने लगा।

सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में साल 1952 में पोलियो संक्रमण के 21,000 से अधिक मामले सामने आए थे। 1955 में इनक्टिवेटिड पोलियो वैक्सीन (आईपीवी) और 1961 में ओरल पोलियोवायरस वैक्सीन (ओपीवी) के आने के बाद पोलियो की घटनाओं में तेजी से गिरावट आई। भारत के संदर्भ में डॉ निवेदिता गुप्ता बताती हैं कि पोलियो का आखिरी मामला 2011 में पश्चिम बंगाल में आया था। इसके बाद कोई भी पोलियो का केस सामने नहीं आया और इसी तरह 2014 में भारत को पोलियो फ्री घोषित कर दिया गया है।

0 comments:

Post a Comment

Thank You For messaging Us we will get you back Shortly!!!