"बहुत दिन बीत गए । स्कूल में कोई हलचल नहीं है। बच्चे मानो स्कूल का रास्ता भूल गए हों। हम पर तो धूल भी जम गई है। हाँ, बीते कुछ महीनों में हमें झाड़ा-पोछा ज़रूर गया था." एक कुर्सी ने कहा। तभी दूसरी बड़ी कुर्सी बोली, "पहले तो हम हर कार्यक्रम को सुनते थे और बीच-बीच में देख भी लेते थे। मुझे तो वह नाटक अभी तक याद है, जिसमें बड़ी और छोटी कुर्सियों के ज़रिए बड़ों के बीच छोटों की बात के महत्त्व को समझाया गया था।"
यह सुनकर छोटी कुर्सी चहक कर बोली, "तभी तो मैं यहाँ हूँ। और आप सभी मेरी बात को महत्त्व नहीं देते हैं। इसी के साथ मैं एक खुशख़बरी दूँ। आप सभी सुनकर खुशी से नाचने लगेंगी।"
"तो जल्दी बताओ कैसी ख़बर सुनने को मिलेगी ?" बड़ी कुर्सियों ने कहा । "ख़बर यह है कि आने वाले सोमवार को स्कूल में वही चहल-पहल होगी और बच्चों के स्वागत के लिए एक कार्यक्रम होगा।" "ख़बर पक्की है!" छोटी कुर्सियों को साफ़ करते-करते सुरेश अंकल अपने-आप में ही बतिया रहे थे, 'बच्चे फिर स्कूल आएँगे, कुर्सियों पर बैठ जाएँगे, झूम-झूमकर नाच-नाचकर सबको गीत सुनाएँगे । सुरेश अंकल कुर्सियाँ साफ़ भी कर रहे थे और गुनगुना भी रहे थे। स्कूल दोबारा खुलने से उनके चेहरे भी खिले हुए थे । वह भी बच्चों का स्वागत करने के लिए तैयार थे।
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