हे स्वर की देवी माँ वाणी में मधुरता दो,
मैं गीत सुनाती हूँ संगीत की शिक्षा दो।
सरगम का ज्ञान नही, ना लय का ठिकाना है,
तुम्हे आज सभा में माँ, हमे दरश दिखाना है।
संगीत समंदर से सुरताल हमें दे दो,
हे स्वर की देवी माँ वाणी में मधुरता दो॥
शक्ति ना भक्ति है, सेवा का ज्ञान नही,
तुम्हे आज सुनाने को, कोई सुन्दर गान नही।
गीतों के खजानो से, एक गीत मुझे दे दो,
हे स्वर की देवी मा वाणी में मधुरता दो॥
अज्ञान ग्रसित होकर, क्या गीत सुनाऊ में,
टूटे हुए शब्दो से, क्या स्वर को सजाऊँ मैं,
तू ज्ञान का स्त्रोत बहा, माँ मुझपे दया कर दो,
हे स्वर की देवी मा वाणी में मधुरता दो॥
हे स्वर की देवी माँ वाणी में मधुरता दो,
में गीत सुनाती हूँ संगीत की शिक्षा दो।।
"माँ सरस्वती" हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती हैं, इसीलिए आइए हम इस शुभ अवसर पर उत्तम मार्ग का अनुसरण करने का संकल्प करते हैं।
संसार में ज्ञान गंगा को बहाने के लिए भागीरथ जैसी तप-साधना करने की प्रतिज्ञा करते है।
अज्ञान से ज्ञान, अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने का दृढ़ संकल्प करते है और जिन्होंने तप, त्याग और दृढ़ इच्छाशक्ति से इस ज्ञान को प्राप्त किया है उनका सम्मान करते है, क्योंकि श्रेष्ठता का सम्मान करने वाला भी श्रेष्ठ होता है।
आज माँ सरस्वती पूजन के शुभ अवसर पर हम सभी लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय से अपने जीवन को प्रकाशमान करें यही शुभेक्छा है।

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