वाणी की देवी मां सरस्वती ।।

क्यों कहते हैं मां सरस्वती को वाणी की देवी ?

बसंत पंचमी पर्व ज्ञान की देवी मां सरस्वती से संबंधित है। मां सरस्वती बुद्धि, ज्ञान व संगीत की देवी हैं। यह पर्व ऋतुओं के राजा वसंत का पर्व है। यह दिन बसंत ऋतु से शुरू होकर फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तक रहता है।

यह पर्व कला व शिक्षाप्रेमियों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। यह त्योहार उत्तर भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान श्रीराम ने माता शबरी के जूठे बेर खाए थे, इस उपलक्ष्य में बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। वाणी की सरिता का नाम ही सरस्वती है।

वाग्देवी सरस्वती वाणी,  विद्या,  ज्ञान-विज्ञान एवं कला-कौशल आदि की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। मानव में निहित उस चैतन्य शक्ति की,  जो उसे अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर अग्रसर करती है। जीभ सिर्फ रसास्वादन का माध्यम ही नहीं  बल्कि वाग्देवी का सिंहासन भी है।

देवी भागवत के अनुसार, वाणी की अधिष्ठात्री सरस्वती देवी का आविर्भाव श्रीकृष्ण की जिह्वा के अग्रभाग से हुआ था। परमेश्वर की जिह्वा से प्रकट हुई वाग्देवी सरस्वती कहलाई।

अर्थात ग्रंथों में माघ शुक्ल पंचमी [बसंत पंचमी] को वाग्देवी के प्रकट होने की तिथि माना गया है। इसी कारण बसंत पंचमी के दिन वागीश्वरी जयंती मनाई जाती है, जो सरस्वती-पूजा के नाम से प्रचलित है।

सरस्वती वंदना : अम्ब विमल मति दे ।।

सरस्वती वंदना : हे स्वर की देवी माँ वाणी में मधुरता दो ।।

सरस्वती वंदना : या कुन्देन्दुतुषारहारधवला ।

तू ही राम है तू रहीम है लिरिक्स ।।

तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो ।।

इतनी शक्ति हमें देना दाता ।। 

नवीन कंठ दो कि में नवीन गान  गा  सकूँ ।।

हे शारदे मां, हे शारदे मां अज्ञानता से हमें तार दे मां ।।

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